Multai News , बैतूल की पवित्र नगरी, जहां हाल ही में शराबबंदी का शंखनाद हुआ। यह शंखनाद सिर्फ शराब की बोतलों के टूटने का नहीं था, बल्कि ‘नए भारत’ में ‘आत्मनिर्भरता’ के नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक भी बन गया। वैसे तो सरकार ने सोचा था कि शराबबंदी से परिवारों में खुशहाली आएगी, स्वास्थ्य सुधरेगा और समाज में शांति का वास होगा। लेकिन मुलताई ने इस उम्मीद को एक नया ही आयाम दे दिया – ‘रोजगार सृजन’ का।
अब आप पूछेंगे, शराबबंदी से रोजगार कैसे? अरे भाई, यह ‘नया भारत’ है! यहां हर चुनौती एक अवसर है, हर पाबंदी एक नया बाजार। मुलताई में जैसे ही सरकारी ठेके बंद हुए, अचानक ‘उद्यमियों’ की एक फौज खड़ी हो गई। ये वो महानुभाव हैं जिन्होंने ‘सेवा परमो धर्मः’ के सिद्धांत को अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया है। अब आपको शराब के लिए ठेके पर जाने की जरूरत नहीं, कोई आपको देखेगा नहीं, कोई टोकेगा नहीं। आपकी पसंदीदा ‘जीवनदायिनी’ सीधे आपके द्वार पर हाजिर होगी।
ये ‘नये उद्यमी’ कौन हैं? ये वही हैं जो शायद पहले किसी और काम-धंधे में ‘सफल’ नहीं हो पाए थे। अब इन्हें ईश्वर ने एक नया रास्ता दिखाया है। ये आस-पास के गांवों, कस्बों और यहां तक कि दूसरे जिलों से ‘जीवन का सार’ (शराब) खरीद कर लाते हैं, और फिर मुलताई के प्यासे कंठों तक उसे पहुंचाते हैं। यह सिर्फ व्यापार नहीं है, यह एक ‘सामाजिक सेवा’ है। सोचिए, एक व्यक्ति जिसे शाम को ‘ठंडक’ चाहिए, उसे कहां-कहां भटकना पड़ेगा? ऐसे में, ये ‘उद्यमी’ देवदूत बनकर आते हैं।
इनकी ‘होम डिलीवरी सेवा’ का तो जवाब नहीं। ग्राहक के दरवाजे तक पहुंचना, वह भी बिना किसी शोर-शराबे के, यह किसी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी के लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट से कम नहीं। रात के अंधेरे में, गली-कूचों से बचते हुए, यह ‘पवित्र कार्य’ संपन्न किया जाता है। इससे न केवल शराब पीने वालों को ‘सुविधा’ मिल रही है, बल्कि इन ‘उद्यमियों’ के घरों में भी चूल्हा जल रहा है। इनका ‘खर्चा-पानी’ आराम से निकल जाता है, और कभी-कभी तो थोड़ी ‘बचत’ भी हो जाती है, जो कि ‘विकास’ का ही एक लक्षण है।
दरअसल, यह ‘आत्मनिर्भर मुलताई’ का एक अनूठा मॉडल है। सरकार ने शराबबंदी की, और जनता ने रोजगार ढूंढ लिया। यह दिखाता है कि हमारी जनता कितनी जुझारू और रचनात्मक है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार क्या नियम बनाती है, वे अपना रास्ता निकाल ही लेते हैं। यह एक प्रकार का ‘समांतर अर्थव्यवस्था’ है, जो बिना किसी सरकारी मदद या अनुदान के फल-फूल रही है। कोई स्टार्टअप इंडिया की बात करता है, कोई स्किल इंडिया की, लेकिन मुलताई ने दिखा दिया कि असली स्किल तो ‘जुगाड़ इंडिया’ में है।
यह भी एक हास्यास्पद सच्चाई है कि अक्सर ऐसी शराबबंदी ‘नाममात्र’ की ही रह जाती है। जिन लोगों को शराब पीनी है, वे कहीं न कहीं से उसका इंतजाम कर ही लेते हैं। ऐसे में, यह प्रतिबंध सिर्फ ‘अवैध धंधे’ को बढ़ावा देता है और नए-नए ‘रोजगार’ के अवसर पैदा करता है, जैसा कि मुलताई में देखा जा रहा है। सरकार अपनी पीठ थपथपाती है कि उसने शराबबंदी कर दी, और ‘नये उद्यमी’ अपनी जेबें भरते हैं।
तो अगली बार जब कोई मुलताई की शराबबंदी पर बात करे, तो याद रखिएगा कि यह सिर्फ एक पाबंदी नहीं, बल्कि ‘रोजगार सृजन’ और ‘सेवा भाव’ का एक अद्भुत उदाहरण भी है। यहां हर घर में एक ‘डिलीवरी बॉय’ है, और हर गली में एक ‘आपूर्ति श्रृंखला’। मुलताई ने दिखा दिया है कि जहां चाह, वहां राह, खासकर जब बात ‘रोजगार’ और ‘मनोरंजन’ की हो। वाह रे मुलताई, तूने तो शराबबंदी को भी ‘विकास का इंजन’ बना दिया!