Burhanpur Hospital news बुरहानपुर अस्पताल की ‘आराम फरमाती’ सोनोग्राफी मशीन: नागरिक बाहर ‘सोनोग्राफी पर्यटन’ पर मजबूर

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बुरहानपुर के सरकारी अस्पताल में रखी सोनोग्राफी मशीन अब ‘मुख दर्शक’ नहीं, बल्कि ‘आराम फरमाती’ VIP बन गई है। लगता है उसे पता चल गया है कि बाहर प्राइवेट क्लिनिक वाले बैठे हैं, तो वह क्यों काम करे? मशीन बेचारी सोचती होगी, “मैं क्यों धूप-पसीने में काम करूं, जब बुरहानपुर के नागरिक इतने मेहनती हैं कि शहर से बाहर जाकर या प्राइवेट में पैसे लुटाकर सोनोग्राफी करवा सकते हैं?”


यह तो गजब ही हो गया है! बुरहानपुरवासी अब सोनोग्राफी के लिए ‘सोनोग्राफी पर्यटन’ पर मजबूर हैं। कोई खंडवा दौड़ रहा है, कोई इंदौर की राह पकड़ रहा है। और यह सब उस मशीन के होते हुए, जो अस्पताल में बस शोभा की वस्तु बनी हुई है। शायद अस्पताल प्रबंधन ने सोचा होगा, “मशीन चलाने से बेहतर है उसे साफ-सुथरा चमका कर रखा जाए, ताकि आने वाले अधिकारी प्रभावित हों!”

अस्पताल की यह स्थिति देखकर लगता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया गया है। लोग अब सोनोग्राफी के लिए सचमुच ‘आत्मनिर्भर’ हो गए हैं – खुद ही रास्ता ढूंढ रहे हैं और खुद ही पैसे खर्च कर रहे हैं।

काश, यह मशीन भी बोल पाती! शायद वह कहती, “मुझे यहां सिर्फ दिखावे के लिए मत रखो, मुझे काम करने दो! मैं मरीजों की मदद करना चाहती हूं, न कि सिर्फ धूल खाकर अपनी रिटायरमेंट का इंतजार करना चाहती हूं।”

बुरहानपुर के नागरिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सरकार से और क्या ही उम्मीद कर सकते हैं, जब अस्पताल की सोनोग्राफी मशीन ही ‘मनोरंजन’ का साधन बन जाए और मरीज ‘बाजार’ का हिस्सा!

नए अतिरिक्त बिंदु:

* जनता की जेब पर दोहरा वार: एक तरफ सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं का ढिंढोरा पीटती है, दूसरी तरफ अस्पताल में मशीनें धूल फांकती हैं। नतीजा? गरीब जनता को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है या अपनी जमापूंजी खर्च करनी पड़ती है, जो सरकारी अस्पताल में मुफ्त या कम दाम में मिलनी चाहिए थी। क्या यही ‘सबका साथ, सबका विकास’ है?

* अधिकारियों की “अज्ञानता” या “उदासीनता”: लगता है संबंधित अधिकारी इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं, या फिर उन्हें फर्क ही नहीं पड़ता। शायद उन्हें लगता है कि मशीन सिर्फ दिखावे के लिए होती है, काम करने के लिए नहीं। या फिर उन्हें विश्वास है कि जनता चुपचाप सहन कर लेगी, क्योंकि उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।

* विश्वास का टूटना: यह सिर्फ एक मशीन का खराब होना नहीं है, यह जनता के सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में विश्वास का टूटना है। जब एक मूलभूत जांच के लिए भी बाहर भटकना पड़े, तो लोग गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए सरकारी अस्पताल पर कैसे भरोसा करेंगे? यह तो सीधे-सीधे जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।

* स्वास्थ्य का “लॉटरी सिस्टम”: बुरहानपुर में अब सोनोग्राफी करवाना एक तरह का ‘लॉटरी सिस्टम’ बन गया है। अगर किस्मत अच्छी हुई तो प्राइवेट में सस्ती मिल जाएगी, वरना दूर जाकर महंगे में करवानी पड़ेगी। और अगर पैसे नहीं हुए तो? बस भगवान भरोसे! क्या नागरिकों का स्वास्थ्य अब किस्मत पर निर्भर करेगा?



* जिम्मेदारी का अभाव: यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य विभाग में जवाबदेही और जिम्मेदारी का घोर अभाव है। सालों से खराब पड़ी मशीनें, बिना स्टाफ के विभाग, और मूलभूत सुविधाओं की कमी आम बात हो गई है। ऐसा लगता है कि किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि आम आदमी को कितनी परेशानी हो रही है।


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