Betul News : बैतूल में ‘सुरा-राज’: आबकारी विभाग बना ‘शराब माफिया’ की कठपुतली, अब बोतल पर रेट नहीं, हाथ पर रेट!

बैतूल में ‘सुरा-राज’: आबकारी विभाग बना ‘शराब माफिया’ की कठपुतली, अब बोतल पर रेट नहीं, हाथ पर रेट!

बैतूल, मध्य प्रदेश: बैतूल जिला इन दिनों एक अजीबोगरीब ‘आर्थिक क्रांति’ का गवाह बन रहा है। यहां शराब की बोतलें अब सिर्फ ‘खुशी’ का पैमाना नहीं, बल्कि ‘आबकारी विभाग की मेहरबानी’ का भी पैमाना बन गई हैं। सूत्रों, और यहां ‘सूत्रों’ का मतलब हर उस व्यक्ति से है जिसने पिछले कुछ समय में बैतूल में शराब खरीदी है, के अनुसार आबकारी विभाग पूरी तरह से शराब माफिया के हाथों की कठपुतली बन चुका है। ऐसा लगता है, सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ की जगह ‘माफिया का साथ, माफिया का विकास’ का नारा अपना लिया है, और इसका सबसे बड़ा उदाहरण बैतूल का शराब बाजार है।

एक वक्त था जब शराब की दुकानों पर एक ‘रेट चार्ट’ हुआ करता था। वह एक पवित्र दस्तावेज था, जिस पर सरकार द्वारा निर्धारित दाम लिखे होते थे। ग्राहक उस चार्ट को देखकर अपनी पसंद की बोतल का चुनाव करता था, और फिर दुकानदार उसे उसी दाम पर देता था। वह एक ‘स्वर्ण युग’ था, जो अब बैतूल के इतिहास का हिस्सा बन चुका है।

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आजकल, बैतूल में शराब खरीदने का अनुभव किसी ‘एडवेंचर स्पोर्ट्स’ से कम नहीं है। आप दुकान पर जाते हैं, अपनी पसंद की बोतल बताते हैं, और फिर एक ‘सस्पेंस’ का माहौल बन जाता है। दुकानदार एक गहरी सांस लेता है, जैसे किसी रहस्यमयी अंकगणित की पहेली सुलझा रहा हो, और फिर एक आंकड़ा आपके सामने पेश करता है। यह आंकड़ा कभी भी ‘सरकारी रेट’ से मेल नहीं खाता, क्योंकि ‘सरकारी रेट’ तो अब सिर्फ कागजों पर हैं, और शायद उन कागजों पर भी नहीं जो किसी ने आखिरी बार पढ़े हों।

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सबसे दिलचस्प बात यह है कि कोई रेट चार्ट नहीं है। ऐसा लगता है कि बैतूल के शराब माफिया ने ‘डिजिटल इंडिया’ की अवधारणा को एक नया आयाम दिया है – अब रेट्स ‘क्लाउड’ में नहीं, बल्कि सीधे दुकानदार के ‘मस्तिष्क’ में स्टोर होते हैं। और जब आप बिल मांगते हैं, तो आपको एक छोटा, हाथ से लिखा हुआ पर्चा थमाया जाता है, जिस पर सिर्फ कुल राशि लिखी होती है। न ब्रांड का नाम, न मात्रा, न प्रति बोतल दर – बस एक जादुई संख्या जो आपकी जेब को हल्की करने के लिए पर्याप्त है।

एक ग्राहक ने व्यंग्यात्मक लहजे में बताया, “पहले जब हम शराब खरीदने जाते थे, तो लगता था कि दुकान पर गए हैं। अब ऐसा लगता है कि हम किसी ‘ब्लैक मार्केट ऑक्शन’ में बैठे हैं, जहां हर बोतल का दाम बोली लगाकर तय होता है। और सबसे बड़ी बोली लगाने वाला कोई ग्राहक नहीं, बल्कि दुकानदार खुद होता है, जो अपने मन से दाम तय करता है।”

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आबकारी विभाग, जिसे इस पूरे खेल पर लगाम कसनी चाहिए, वह या तो गहरी नींद में है, या फिर उसने ‘आंखें मूंद ली’ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग ने अपने कर्तव्य को ‘पर्यवेक्षण’ से बदलकर ‘पर्यवेक्षण की अनदेखी’ कर दिया है। शायद उनके पास इतना समय नहीं है कि वे इन छोटे-मोटे ‘अनियमितताओं’ पर ध्यान दें, क्योंकि वे शायद ‘बड़े खेल’ में व्यस्त हैं।

यह स्थिति न केवल उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डाल रही है, बल्कि सरकार के राजस्व को भी नुकसान पहुंचा रही है। मनमाने दाम पर शराब बेचने से कालाबाजारी को बढ़ावा मिल रहा है, और ईमानदारी से टैक्स देने वाले नागरिक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

बैतूल के नागरिकों का अब एक ही सवाल है: क्या आबकारी विभाग कभी अपनी ‘नींद’ से जागेगा, या फिर बैतूल में ‘मनमाने दाम’ और ‘हाथ से लिखे बिल’ ही नई ‘सरकारी नियमावली’ बन जाएंगे? जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक बैतूल में शराब खरीदना सिर्फ ‘शराब पीना’ नहीं, बल्कि ‘शराब माफिया को पोषित करना’ होगा। और हम सभी जानते हैं कि इस खेल में असली विजेता कौन है।

 

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