बैतूल जिले में कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद के लिए जारी खींचतान अब खुलकर सामने आ गई है, जहाँ दो प्रमुख गुटों, ‘शेठ जी’ और ‘भौजी’ के बीच वर्चस्व की जंग तेज हो गई है। यह पद जिले में पार्टी का चेहरा होने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने और चुनावी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में, इन दो धड़ों के बीच की प्रतिस्पर्धा ने जिले की राजनीतिक सरगर्मियों को और बढ़ा दिया है।
जिलाध्यक्ष पद का महत्व और दावेदारों की दौड़जिलाध्यक्ष का पद सिर्फ एक कुर्सी नहीं, बल्कि पूरे जिले में कांग्रेस संगठन की धुरी होता है। यह वह कड़ी है जो प्रदेश नेतृत्व के निर्देशों को जमीनी स्तर तक पहुंचाती है और कार्यकर्ताओं की आवाज़ को आलाकमान तक ले जाती है। आने वाले समय में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर, एक मजबूत और सर्व-मान्य जिलाध्यक्ष का होना पार्टी के लिए बेहद ज़रूरी है
वर्तमान में, जिलाध्यक्ष पद के लिए कई नाम चर्चा में हैं, लेकिन पर्दे के पीछे मुख्य मुकाबला ‘शेठ जी’ और ‘भौजी’ के नाम से पहचाने जाने वाले दो प्रभावशाली गुटों के बीच सिमटता दिख रहा है। दोनों गुट अपने-अपने प्रबल दावेदारों को आगे बढ़ा रहे हैं, और उन्हें यह पद दिलाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।’शेठ जी’ और ‘भौजी’ गुटों की कशमकशबैतूल की कांग्रेस राजनीति में ‘शेठ जी’ गुट और ‘भौजी’ गुट का अपना-अपना प्रभाव और जनाधार रहा है। * ‘शेठ जी’ गुट अक्सर अनुभवी और पुराने कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देने के लिए जाना जाता है, जिनके पास संगठन का लंबा अनुभव और एक स्थापित नेटवर्क होता है। यह गुट पार्टी में स्थिरता और पारंपरिक मूल्यों पर ज़ोर देता है। * दूसरी ओर, ‘भौजी’ गुट अक्सर युवा चेहरों और नए विचारों को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रहता है, जो संगठन में नई ऊर्जा और आधुनिक रणनीति लाने की बात करते हैं।
यह गुट कार्यकर्ताओं के बीच जोश भरने और नए सिरे से पार्टी को सक्रिय करने पर ध्यान केंद्रित करता है।इस बार की जिलाध्यक्ष की दौड़ में, दोनों गुट अपने-अपने प्रत्याशियों के लिए पुरजोर लॉबिंग कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं में भी यह चर्चा आम है कि “देखते हैं किसका गुट भारी पड़ता है।” इस आंतरिक खींचतान से पार्टी के भीतर थोड़ी कशमकश का माहौल बना हुआ है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अंततः यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ही पार्टी को मजबूती देगी।आलाकमान की भूमिका और अंतिम निर्णयजिलाध्यक्ष के चयन में पार्टी के प्रदेश और केंद्रीय आलाकमान की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है।
स्थानीय स्तर पर दोनों गुटों की दावेदारी और शक्ति प्रदर्शन के बावजूद, अंतिम मुहर शीर्ष नेतृत्व ही लगाता है। आलाकमान अक्सर ऐसे व्यक्ति को चुनना पसंद करता है जो न केवल जिले में स्वीकार्य हो, बल्कि जो दोनों गुटों को साध सके और पार्टी के बड़े लक्ष्यों के लिए काम करे।ऐसी अटकलें भी हैं कि आलाकमान गुटबाजी को कम करने और पार्टी में एकता लाने के लिए किसी ऐसे चेहरे को भी चुन सकता है, जो किसी एक गुट से बंधा न हो, बल्कि सबकी सहमति से आगे आए। दिल्ली और भोपाल में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के पास दोनों गुटों के नेताओं की लगातार आवाजाही जारी है, और वे अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘शेठ जी’ का पलड़ा भारी पड़ता है या ‘भौजी’ अपने पसंद के जिलाध्यक्ष को बैतूल में बनवाने में कामयाब रहते हैं।
आगे की राह: एकता ही शक्तिबैतूल कांग्रेस के लिए यह ज़रूरी है कि जिलाध्यक्ष का चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद, सभी गुट और कार्यकर्ता एकजुट होकर काम करें। आपसी प्रतिस्पर्धा को पीछे छोड़कर, पार्टी को आम जनता से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। एक मजबूत और संगठित कांग्रेस ही आगामी चुनावों में बैतूल में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी। यह चुनाव केवल एक पद का फैसला नहीं, बल्कि जिले में कांग्रेस के भविष्य की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण मोड़ है।