Trade war : अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच बातचीत, गतिरोध बरकरार – आखिर क्या हुई चर्चा

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच बातचीत, गतिरोध बरकरार – आखिर क्या हुई चर्चा?

नई दिल्ली: वैश्विक अर्थव्यवस्था की धड़कनें तेज करने वाले अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एक बार फिर सुर्खियों में है। टाइम्स ऑफ इंडिया की हालिया रिपोर्टों के अनुसार, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच टैरिफ को लेकर चल रहे गतिरोध के बीच महत्वपूर्ण बातचीत हुई है। हालांकि इस बातचीत से तुरंत कोई बड़ा समझौता सामने नहीं आया है, इसने वैश्विक व्यापार संबंधों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। आइए जानते हैं इस उच्च-स्तरीय चर्चा में क्या मुद्दे उठाए गए और इसका क्या महत्व है।

पृष्ठभूमि: एक दशक पुराना तनाव

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध कोई नई बात नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान, 2018 में शुरू हुए इस विवाद ने दुनिया भर के बाजारों को हिला दिया था। अमेरिका ने चीन पर अनुचित व्यापार प्रथाओं, बौद्धिक संपदा की चोरी और अपनी मुद्रा के अवमूल्यन का आरोप लगाते हुए चीनी वस्तुओं पर अरबों डॉलर के टैरिफ लगाए थे। जवाब में, चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाए, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध तनावपूर्ण हो गए।

हालांकि जो बिडेन प्रशासन ने कुछ नीतियों में बदलाव किया, लेकिन चीन के साथ व्यापारिक तनाव पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ। अब, डोनाल्ड ट्रंप के 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में फिर से एक प्रमुख दावेदार के रूप में उभरने के साथ, व्यापार युद्ध को लेकर चिंताएं फिर से बढ़ गई हैं। ट्रंप ने लगातार चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की वकालत की है और यहां तक कि भविष्य में और अधिक टैरिफ लगाने की संभावना भी जताई है।

ट्रंप-शी बातचीत: क्या था एजेंडा?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्टों से पता चलता है कि डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच हुई नवीनतम बातचीत में मुख्य रूप से टैरिफ और व्यापार असंतुलन का मुद्दा हावी रहा। हालांकि बातचीत के विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा हुई होगी:

* मौजूदा टैरिफ का भविष्य: ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए मौजूदा टैरिफ को लेकर गतिरोध बना हुआ है। चीन चाहता है कि ये टैरिफ हटाए जाएं, जबकि ट्रंप ने इन्हें हटाने से इनकार किया है और यहां तक कि इन्हें बढ़ाने की धमकी भी दी है। इस बातचीत में दोनों नेताओं ने शायद इन टैरिफ के भविष्य पर अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट की होगी।

* व्यापार असंतुलन: अमेरिका का हमेशा से यह आरोप रहा है कि चीन के साथ उसका व्यापार घाटा बहुत अधिक है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका चीन से अधिक आयात करता है जितना वह निर्यात करता है। ट्रंप ने इस असंतुलन को “अन्यायपूर्ण” बताया है और इसे कम करने के लिए दबाव डाला है। यह निश्चित रूप से बातचीत का एक प्रमुख बिंदु रहा होगा।

* बौद्धिक संपदा अधिकार: अमेरिका लगातार चीन पर बौद्धिक संपदा की चोरी का आरोप लगाता रहा है। यह मुद्दा, भले ही सीधे टैरिफ से संबंधित न हो, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण बाधा है। संभव है कि इस पर भी संक्षिप्त चर्चा हुई हो।

* वैश्विक आर्थिक प्रभाव: दोनों नेता इस बात से वाकिफ हैं कि उनके बीच का व्यापार युद्ध न केवल उनके देशों को प्रभावित करता है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। बातचीत में शायद इस बात पर भी चर्चा हुई होगी कि इस गतिरोध को कैसे कम किया जाए ताकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और वित्तीय बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

गतिरोध क्यों बना हुआ है?

इस उच्च-स्तरीय बातचीत के बावजूद, टैरिफ को लेकर गतिरोध अभी भी बना हुआ है। इसके कई कारण हो सकते हैं:

* राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: दोनों नेता अपने-अपने देशों में मजबूत स्थिति बनाए रखना चाहते हैं। टैरिफ पर रियायत देने को घरेलू स्तर पर कमजोरी के रूप में देखा जा सकता है, खासकर ट्रंप के लिए, जो ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति पर जोर देते हैं।

* संरचनात्मक मुद्दे: व्यापार युद्ध केवल टैरिफ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह चीन की राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था, सब्सिडी और बाजार तक पहुंच जैसे गहरे संरचनात्मक मुद्दों से भी संबंधित है, जिन पर तुरंत समझौता करना मुश्किल है।

* रणनीतिक प्रतिस्पर्धा: व्यापार युद्ध केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक भी है। अमेरिका चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को चुनौती देना चाहता है, और व्यापार इसका एक उपकरण है।

आगे क्या? भारत पर प्रभाव

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्टें बताती हैं कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का यह गतिरोध निकट भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है। यदि डोनाल्ड ट्रंप 2024 का चुनाव जीतते हैं, तो यह और भी बढ़ सकता है, जिससे नए टैरिफ और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में और अधिक व्यवधान आ सकते हैं।

भारत के लिए, इस व्यापार युद्ध के मिश्रित प्रभाव हो सकते हैं। एक तरफ, यह भारत को कुछ क्षेत्रों में विनिर्माण के लिए एक वैकल्पिक गंतव्य के रूप में उभरने का अवसर प्रदान कर सकता है, क्योंकि कंपनियां चीन से बाहर विविधता लाने की तलाश में हैं। दूसरी ओर, वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और धीमी आर्थिक वृद्धि का भारत के निर्यात और विदेशी निवेश पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

संक्षेप में, ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच की बातचीत ने व्यापार युद्ध की आग को ठंडा करने में कोई तत्काल सफलता नहीं दिलाई है। दुनिया भर की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि ये दो आर्थिक महाशक्तियां आगे क्या कदम उठाती हैं, और इसका वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया जैसी समाचार एजेंसियां इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर लगातार नज़र रख रही हैं, और उनके अपडेट वैश्विक व्यापार परिदृश्य को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।

 

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