Betul News :प्रदीप और सागर की ‘रोजगार’ गाथा और पुलिस की मौन स्वीकृति पर सवाल

 

बैतूलबाजार, बैतूल: बैतूलबाजार थाना क्षेत्र के अंतर्गत कोलगांव में जुए का धंधा इन दिनों खूब फल-फूल रहा है, जिसने न केवल स्थानीय प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि समाज में एक चिंताजनक माहौल भी पैदा कर दिया है। आश्चर्यजनक रूप से, इस अवैध गतिविधि को ‘रोजगार’ का नाम दिया जा रहा है, जहाँ प्रदीप और सागर नामक दो युवा कथित तौर पर इस काले कारोबार के केंद्र बिंदु बने हुए हैं। स्थानीय लोगों के बीच यह बात तेजी से फैल रही है कि यह जुआ, जो ताप्ती नदी के पावन किनारे के आसपास बैतूलबाजार थाना की सीमा में संचालित हो रहा है, उसे प्रशासन से ‘मौन अनुमति’ मिली हुई है।

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रोजगार या अपराध का मुखौटा?

कोलगांव में जुए के इस धंधे को ‘रोजगार’ का नाम दिया जाना अपने आप में विरोधाभासी और निंदनीय है। जहाँ एक ओर सरकार युवाओं को स्वरोजगार और कौशल विकास के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ असामाजिक तत्व अवैध गतिविधियों को रोजगार का जामा पहनाकर समाज को गुमराह कर रहे हैं। प्रदीप और सागर, जिनके नाम इस ‘रोजगार’ से जुड़ रहे हैं, कथित तौर पर जुए के इस अड्डे का संचालन कर रहे हैं, जिससे उनकी ‘कमाया’ जा रही है, लेकिन इसकी सामाजिक कीमत बहुत भारी है।

 

बीट प्रभारी की मौन सहमति और लाखों का टर्नओवर

चौंकाने वाली बात यह है कि इस अवैध जुए के कारोबार को बैतूलबाजार क्षेत्र के बीट प्रभारी की कथित ‘मौन सहमति’ के आधार पर संचालित किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, यदि बीट प्रभारी की अनदेखी या मिलीभगत न हो, तो इतने बड़े पैमाने पर जुआ संचालित होना लगभग असंभव है। प्रतिदिन इस अड्डे पर पांच से दस लाख रुपए तक का जुआ खेला जा रहा है, जिससे जुआरियों और उनके परिवारों को आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से भारी नुकसान हो रहा है।

संरक्षणकर्ता कौन? पुलिस के लिए चुनौती

इस जुए के धंधे का सबसे गहरा पहलू इसके ‘संरक्षणकर्ता’ का सवाल है। बताया जा रहा है कि इस अवैध गतिविधि को किसी ‘नामी’ व्यक्ति का संरक्षण प्राप्त है, जिसका नाम अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है। यह व्यक्ति कौन है? यह प्रश्न पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। क्या पुलिस जानबूझकर इस व्यक्ति की पहचान छुपा रही है, या वे वास्तव में उसकी पहचान करने में असमर्थ हैं? यह रहस्य समाज में कई अटकलों को जन्म दे रहा है।

पुलिस अधीक्षक की सक्रियता और नीचे की निष्क्रियता

वर्तमान पुलिस अधीक्षक जुए जैसी अवैध गतिविधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के लिए जाने जाते हैं। वे लगातार थाना प्रभारियों को जुए और सट्टे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश देते रहते हैं, और इसके लिए बकायदा क्लास भी लगाई जाती है। इसके बावजूद, बैतूलबाजार थाना क्षेत्र में जुआ खुलेआम संचालित हो रहा है। यह स्थिति पुलिस अधीक्षक के निर्देशों और जमीनी हकीकत के बीच एक बड़े अंतर को दर्शाती है। ऐसा लगता है कि उच्च अधिकारियों के निर्देश निचले स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पा रहे हैं।

समाज पर बुरा प्रभाव: घरों की बर्बादी का डर

यह जुआ न केवल कानून व्यवस्था के लिए खतरा है, बल्कि इसका समाज पर भी गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जुए की लत में फंसकर कई परिवार बर्बाद हो चुके हैं, और कई और बर्बाद होने की कगार पर हैं। जुए से अर्जित धन अक्सर अपराध और अन्य अवैध गतिविधियों में भी उपयोग किया जाता है, जिससे क्षेत्र में आपराधिक माहौल पनपता है।

जिम्मेदारों की अनदेखी या मिलीभगत?

इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका पर उठता है। क्या यह उनकी अनदेखी है, या फिर इसमें उनकी मिलीभगत है? स्थानीय जानकार बताते हैं कि थाना प्रभारी को इस सब की ‘हवा’ तक नहीं लग रही है, या फिर वे जानबूझकर आंखें मूंदे हुए हैं। व्यंग्यात्मक लहजे में कहा जा रहा है कि “यहां पर सब मस्त-मस्त हो रहा है,” जो इस अवैध कारोबार की बेफिक्री और पुलिस की निष्क्रियता को दर्शाता है।

इस गंभीर स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो यह जुआ और भी गहरे तक अपनी जड़ें जमा लेगा, और समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा। पुलिस और प्रशासन को पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ इस मामले की जांच करनी चाहिए, और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों। कोलगांव के प्रदीप और सागर को मिला यह ‘रोजगार’ वास्तव में समाज के लिए एक गंभीर चुनौती है, जिस पर तत्काल नियंत्रण पाना आवश्यक है।

 

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