Burhanpur hospital News :- बुlरहानपुर अस्पताल: मंच पर सम्मान, ज़मीन पर सन्नाटा – तस्वीरों की भूख और झूठे दावों का बोलबाल!
बुरहानपुर अस्पताल में आजकल एक नया चलन ज़ोरों पर है – मंच पर जाकर ‘सम्मान’ बटोरने का। लगता है जैसे यह कोई ‘सम्मान-संग्राम’ चल रहा हो, जिसमें नेता और अधिकारी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन ज़मीन पर? ज़मीन पर तो मरीज़ों की चीखें और बढ़ते हुए पाइजनिंग व आत्महत्या के मामलों की खामोशी है। शायद सम्मान की चमक इतनी तेज़ है कि उन्हें यह सब दिखाई नहीं देता।
अरे, उन्हें फुर्सत कहाँ कि ज़मीनी स्तर पर काम करें? उन्हें तो बस यह चिंता है कि अगली ‘फोटो ऑपर्च्युनिटी’ कहाँ मिलेगी और किस कार्यक्रम में जाकर वे कुछ वाहवाही समेट सकें। जनता जाए भाड़ में, मरीज़ तड़पते रहें, इन्हें तो अपनी ‘पब्लिसिटी’ से मतलब है।
और तो और, समाचार पत्रों में अपनी वाहवाही लूटने के चक्कर में इन्होंने तो झूठ की भी सारी हदें पार कर दीं! सुना है, किसी मेमसाब ने बड़ी शान से फरमाया कि वह लगातार 12 घंटे की नाईट ड्यूटी करती हैं। वाह! क्या समर्पण है! लेकिन जब पड़ताल की गई, तो पता चला कि मेडम ने तो पिछले आठ-नौ सालों से रात में अस्पताल में अपना पवित्र पैर भी नहीं रखा है। यह तो ‘दिन में तारे दिखाने’ वाली बात हो गई!
लगता है बुरहानपुर अस्पताल अब ‘फोटो खिंचाओ और भूल जाओ’ नीति पर चल रहा है। मरीजों की जान जाए तो जाए, बस अखबारों में अपनी तस्वीर आनी चाहिए। शायद अस्पताल के बोर्ड पर अब यह लिख देना चाहिए – “यहाँ इलाज बाद में, सम्मान पहले!”
यह देखकर तो यही लगता है कि बुरहानपुर के स्वास्थ्य सेवाओं का ‘ऑपरेशन’ सफल रहा, लेकिन ‘मरीज़’ मर गया। मंच पर तालियाँ बजती रहीं और अस्पताल में सिसकियाँ गूंजती रहीं। यह कैसा ‘विकास’ है, जहाँ सम्मान तो खूब मिलता है, लेकिन लोगों को सही इलाज तक नसीब नहीं होता? लगता है, बुरहानपुर के लोगों को अब मंच पर मिलने वाले खोखले सम्मान से ज़्यादा, ज़मीन पर काम करने वाले सच्चे सेवकों की ज़रूरत है। लेकिन इन ‘फोटोजीवी’ लोगों को यह बात कौन समझाए?
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