मुलताई की इंजीनियरिंग: जहां ‘कौशल’ सिर्फ एक मजाक है

!वाह रे मुलताई! तेरी लीला अपरंपार! यह खबर सिर्फ एक सूचना नहीं, बल्कि आधुनिक भारत के ‘नियोजन’, ‘दक्षता’ और ‘गुणवत्ता’ पर एक करारा व्यंग्य है। जिस देश में आईआईटी और एनआईटी से निकले इंजीनियर बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं, उसी देश के एक छोटे से शहर में नगरपालिका ने ‘सिविल’ इंजीनियरिंग को इतनी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है कि अब उसे ‘इलेक्ट्रिकल’ इंजीनियरों के कंधे पर लाद दिया गया है। इसे कहते हैं ‘समावेशी विकास’, जहां योग्यता की दीवारें तोड़कर, हर किसी को हर काम करने की ‘आज़ादी’ दी जाती है!खबर का शीर्षक ही इतना जानदार है: “दो सिविल इंजीनियर होने के बाद इलेक्ट्रिकल इंजीनियर को दे रखे सर्वाधिक सिविल वर्क।” अब यहां पहला सवाल यह उठता है कि अगर ‘दो सिविल इंजीनियर’ पहले से मौजूद थे, तो फिर ‘सर्वाधिक सिविल वर्क’ किसी ‘इलेक्ट्रिकल इंजीनियर’ को क्यों दिए गए? क्या मुलताई के सिविल इंजीनियरों की डिग्री पर ‘चाइनीज माल’ का ठप्पा लगा है, जो उनकी ‘वारंटी’ जल्दी खत्म हो जाती है? या फिर वे इतने ‘आधुनिक’ हैं कि ‘ईंट-गारे’ के पुराने कामों को हाथ लगाना अपनी ‘शान’ के खिलाफ समझते हैं? शायद उन्होंने शपथ ली होगी कि वे सिर्फ ‘ब्लॉकचेन आधारित स्मार्ट सिटी’ या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित जल निकासी प्रणाली’ ही बनाएंगे, बाकी ‘नीरस’ काम तो ‘लोकल इलेक्ट्रिकल’ वाले ही करें!सबसे मजेदार बात यह है कि “भवन निर्माण की अनुमति भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पास” है। अब सोचिए, एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, जिसे ‘वोल्टेज’, ‘एम्पीयर’, और ‘सर्किट’ का ज्ञान होता है, वह ‘नींव’, ‘कॉलम’, और ‘बीम’ की मजबूती कैसे परखेगा? क्या वह ‘अमीटर’ से दीवार की मोटाई मापेगा और ‘वोल्टमीटर’ से छत की ऊंचाई? कहीं ऐसा न हो कि भविष्य में मुलताई में बनने वाले भवनों की ‘फ्यूज’ बार-बार उड़ने लगें, या उनमें ‘शॉर्ट सर्किट’ होने लगें, और बाद में पता चले कि ‘डिजाइन’ में ही ‘करंट’ आ गया था! यह तो ऐसा ही है जैसे किसी ‘हृदय रोग विशेषज्ञ’ से ‘दांत का इलाज’ करवाना या किसी ‘गाड़ी मैकेनिक’ से ‘जहाज उड़वाना’।

वाह रे मुलताई की ‘उच्चस्तरीय’ प्रशासनिक व्यवस्था!खबर में ‘एक्सपर्ट व्यू’ भी बड़ा ही ज्ञानवर्धक है, जो बताता है कि “इलेक्ट्रिकल वाले से सिविल का काम लेना ही नहीं।” यह तो वही बात हुई कि ‘सूरज पूरब से निकलता है’, जिसे सदियों से लोग जानते हैं। लेकिन मुलताई में लगता है, ‘ज्ञान’ भी ‘विद्युत तरंगों’ की तरह ‘दिशाहीन’ बहता है, और ‘सही सर्किट’ में नहीं पहुंच पाता। अमन सिंह चौहान, जो कि खुद एक सिविल इंजीनियर हैं, वे बड़े मासूमियत से कह रहे हैं कि ‘इंजीनियरिंग की पढ़ाई में बेसिक ही सिविल इंजीनियरिंग सिखाया जाता है, लेकिन उससे विशेषज्ञता नहीं आती है।’ अरे अमन जी, मुलताई की नपा में ‘विशेषज्ञता’ का क्या काम? वहां तो ‘बहुमुखी प्रतिभा’ का सम्मान होता है, जहां एक ही व्यक्ति ‘सड़क’, ‘भवन’, ‘पानी’ और ‘बिजली’ सब एक साथ संभाल सकता है। इसे कहते हैं ‘वन-मैन आर्मी’ का सिद्धांत, जो कि सिर्फ ‘मुलताई’ जैसी ‘अद्भुत’ जगहों पर ही देखने को मिलता है।और हां, वह ‘राम की चिड़िया राम का खेत, खाओ री चिड़िया भर-भर पेट’ वाली कहावत भी कितनी सटीक बैठती है! मुलताई नपा में शायद यह ‘आदर्श’ वाक्य बन गया है। काम किसी का हो, करे कोई और, और ‘पेट’ सबका भरे। इसमें ‘गुणवत्ता’ की बात कहां से आ गई? ‘गुणवत्ता’ तो आजकल ‘लग्जरी आइटम’ बन गई है, जो सिर्फ ‘बड़ी-बड़ी कंपनियों’ के ‘ब्रांडेड उत्पादों’ में ही मिलती है, ‘सरकारी ठेकों’ में नहीं।

“मुलताई नपा में इसलिए निर्माण गुणवत्ता पर लगातार है प्रश्नचिन्ह।” अब भला प्रश्नचिन्ह क्यों न लगे? जब ‘योग्यता’ और ‘स्पेशलिटी’ को ‘कचरा’ मान लिया जाए, और ‘इलेक्ट्रिकल’ को ‘सिविल’ का ठेकेदार बना दिया जाए, तो ‘गुणवत्ता’ की तो ‘आत्मा’ ही रो पड़ेगी। खबर कहती है कि “दबे मुंह, दबे दांत सभी सुनी जाती है।” यह बात तो बिल्कुल सही है। हमारे देश में ‘सच’ हमेशा ‘फुसफुसाहट’ में ही बोला जाता है, क्योंकि ‘जोर से बोलने’ पर ‘अधिकारियों की कुर्सी’ हिलने का खतरा रहता है। कौन चाहेगा कि ‘सरकारी तंत्र’ की ‘नींद’ टूटे?सबसे दिलचस्प बात यह है कि “गड़बड़ नपा कार्यालय अध्यक्ष और सीएमओ बखूबी जानते हैं, लेकिन अज्ञात कारणों से कोई भी इस तरह का सिविल पदो की रोकने में रुचि नहीं लेता है।” अब ये ‘अज्ञात कारण’ कौन से हैं, यह तो ‘मुलताई’ के ‘रहस्यमयी’ गलियारों में ही पता चलेगा। शायद ये ‘कारण’ इतने ‘खुफिया’ हैं कि उन्हें ‘परमाणु बम’ बनाने की विधि से भी ज्यादा गोपनीय रखा गया है! या फिर ‘रोकने’ में ‘रुचि’ इसलिए नहीं है क्योंकि ‘रुचि’ कहीं और ‘जागृत’ हो रही है।और अंत में, “प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी योगेश अग्रवाल के पास ही है।”

अब अगर ‘योगेश अग्रवाल’ जी भी ‘इलेक्ट्रिकल’ इंजीनियर हैं, तो फिर इस ‘चक्रव्यूह’ से ‘गुणवत्ता’ कैसे बाहर निकलेगी, यह तो ‘ब्रह्मा’ भी नहीं बता सकते। खैर, मुलताई वालों को सलाम! जहां ‘नियमानुसार’ काम करने की बजाय ‘नियंत्रण’ और ‘लाभ’ की ‘नियति’ तय होती है। उम्मीद है कि भविष्य में मुलताई के ‘पुल’ और ‘इमारतें’ कम से कम इतनी मजबूत तो रहें कि उन पर ‘बिजली के तार’ बांधकर ‘इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग’ का ‘लाइव डेमो’ दिया जा सके! तब तक ‘राम की चिड़िया’ ‘भर-भर पेट’ खाती रहे, भले ही ‘खेत’ किसी का भी हो!

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